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“एम. एस. स्वामीनाथन: भारत के हरित क्रांति के जनक”

एम.एस. स्वामीनाथन भारतीय कृषि क्षेत्र के एक महान वैज्ञानिक थे, जिनका योगदान भारतीय कृषि को बदलने में अत्यंत महत्वपूर्ण था। उनका योगदान विशेष रूप से हरित क्रांति (Green Revolution) में था, जिसने भारत को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां उनकी जीवन यात्रा और भारत को बदलने में उनके योगदान का वर्णन किया गया है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • पूरा नाम: मंकोम्बू सांबासिवन स्वामीनाथन
  • जन्म: 7 अगस्त 1925, कुम्बकोणम, तमिलनाडु, भारत स्वामीनाथन का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था, जिससे उन्हें बचपन से ही कृषि से जुड़ी बातें समझने का अवसर मिला। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु में प्राप्त की और कृषि में स्नातक की डिग्री तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), दिल्ली से कृषि विज्ञान में मास्टर डिग्री की और फिर अमेरिका के विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय से कृषि वनस्पति विज्ञान में डॉक्टरेट (Ph.D.) की डिग्री प्राप्त की।

कृषि और हरित क्रांति में योगदान

एम.एस. स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है, जिसका उद्देश्य भारत की कृषि उत्पादन क्षमता को बढ़ाना था, विशेष रूप से 1960 और 1970 के दशक में। उनके प्रयासों से भारत में खाद्यान्न की पैदावार में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई।

  • उच्च उपज वाली किस्में (HYVs): स्वामीनाथन ने नोर्मन बोरलॉग जैसे विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ मिलकर भारत में गेहूं और चावल की उच्च उपज वाली किस्मों का परिचय कराया। इन किस्मों ने अधिक अनाज उत्पादन की क्षमता दी और कृषि उत्पादन में वृद्धि की।
  • कृषि नीति: उन्होंने भारतीय सरकार को खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए नई कृषि प्रौद्योगिकियों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ावा देने की सलाह दी।
  • मिट्टी की सेहत और स्थिरता: उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ, स्वामीनाथन ने मिट्टी की सेहत, जल संरक्षण और स्थिर कृषि प्रथाओं को बढ़ावा दिया, ताकि पर्यावरणीय क्षति से बचा जा सके।

भारत और वैश्विक कृषि विकास में भूमिका

स्वामीनाथन का कार्य केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने वैश्विक कृषि अनुसंधान और विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया:

  • ICRISAT (अंतर्राष्ट्रीय कृषिविज्ञान संस्थान): स्वामीनाथन इस संस्थान के संस्थापक सदस्य रहे और इसके माध्यम से सेमी-एरिड क्षेत्रों में कृषि विकास की दिशा में कार्य किया।
  • एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन: 1988 में स्थापित यह फाउंडेशन ग्रामीण आजीविका और स्थायी कृषि विकास को बढ़ावा देने का कार्य करता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किसानों को नई तकनीकों के माध्यम से मदद करता है।

पुरस्कार और सम्मान

स्वामीनाथन को उनके कृषि क्षेत्र में योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले:

  • पद्मभूषण (1989) और पद्मविभूषण (2004), जो भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान हैं।
  • विश्व खाद्य पुरस्कार (1987), जो उन्हें कृषि विकास और भूख को कम करने के प्रयासों के लिए मिला।

कृषि और पर्यावरण पर उनके विचार

स्वामीनाथन केवल कृषि उत्पादन बढ़ाने पर ही नहीं, बल्कि कृषि को अधिक समावेशी और स्थायी बनाने पर भी जोर देते थे:

  • किसान सशक्तिकरण: उन्होंने छोटे किसानों के कल्याण के लिए नीतियों की सिफारिश की, ताकि वे तकनीकी बदलावों का लाभ उठा सकें।
  • स्थायी कृषि: स्वामीनाथन ने स्थायी खेती के महत्व पर बल दिया, जिसमें पर्यावरण के संरक्षण के साथ खाद्य सुरक्षा की चुनौती का समाधान हो सके।
  • जल और जैव विविधता: स्वामीनाथन ने जल संसाधनों और जैव विविधता के संरक्षण की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित किया और पर्यावरणीय नुकसान से बचने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाने की बात की।

भारत में प्रभाव और योगदान

स्वामीनाथन के योगदान ने भारत में कृषि के क्षेत्र को बदल दिया:

  • खाद्य सुरक्षा: उनके कार्यों के कारण भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ और देश में अकाल और भुखमरी की समस्या पर काबू पाया गया।
  • कृषि सुधार: उनके योगदान से भारत ने पारंपरिक कृषि मॉडल से एक आधुनिक, तकनीकी-आधारित कृषि मॉडल की ओर कदम बढ़ाया। हालांकि, इस प्रक्रिया में कुछ पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियाँ भी सामने आईं, जैसे रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग।
  • हरित क्रांति की आलोचना: हरित क्रांति के दौरान उच्च उपज वाली किस्मों और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के कारण पर्यावरणीय समस्याएं भी उत्पन्न हुईं। स्वामीनाथन ने बाद में “एवरग्रीन रेवोल्यूशन” (Evergreen Revolution) का समर्थन किया, जिसमें टिकाऊ कृषि और पर्यावरणीय संतुलन पर ध्यान दिया गया।

अंतिम वर्ष और निरंतर समर्थन

स्वामीनाथन ने अपने करियर के बाद भी कृषि, विज्ञान और नीति में प्रमुख आवाज़ के रूप में काम किया। वे जलवायु परिवर्तन से निपटने और समावेशी विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग के पक्षधर रहे।

निधन

एम.एस. स्वामीनाथन का निधन 28 सितंबर 2023 को हुआ, लेकिन उनका योगदान और उनका कार्य भारतीय कृषि और विश्व के लिए एक अमिट धरोहर छोड़ गया है।

निष्कर्ष

एम.एस. स्वामीनाथन का जीवन और कार्य भारतीय कृषि क्षेत्र में एक क्रांति का प्रतीक है। उनकी मदद से भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की और लाखों लोगों की जीवनशैली में सुधार आया। उनका कार्य स्थायी कृषि प्रथाओं और किसानों की सशक्तिकरण के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

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