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संविधान का इतिहास और विकास

भारतीय संविधान का इतिहास और विकास: मनुस्मृति से आधुनिक संविधान तक

1. प्रस्तावना

भारत एक प्राचीन सभ्यता है, जहाँ शासन और कानून की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। भारतीय संविधान का विकास कई चरणों में हुआ, जिसमें प्राचीन धर्मशास्त्र, ब्रिटिश कानून और आधुनिक लोकतांत्रिक विचारधाराएँ शामिल हैं। मनुस्मृति जैसे प्राचीन विधि ग्रंथों से लेकर ब्रिटिश काल के अधिनियमों और स्वतंत्रता संग्राम तक, भारत का संविधान कई ऐतिहासिक और सामाजिक परिवर्तनों का परिणाम है।

भाग 1: प्राचीन भारत की विधि प्रणाली

2. वेद, स्मृतियाँ और प्राचीन विधि ग्रंथ

प्राचीन भारत में कानून और शासन की व्यवस्था मुख्यतः धर्मशास्त्रों, विशेष रूप से “स्मृतियों” पर आधारित थी।

(i) वेदों और उपनिषदों में विधि व्यवस्था

  • ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में सामाजिक जीवन के नियम बताए गए हैं।
  • उपनिषदों में नैतिकता और न्याय से संबंधित विचार प्रस्तुत किए गए हैं।

(ii) मनुस्मृति और अन्य स्मृतियाँ

मनुस्मृति (लगभग 200 ईसा पूर्व – 200 ईस्वी) एक प्रमुख विधि ग्रंथ था, जिसमें सामाजिक आचार-विचार और कानूनों का उल्लेख मिलता है।

  • समाज को चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) में विभाजित किया गया।
  • राजा को न्यायाधीश और शासक के रूप में देखा गया।
  • महिलाओं और निम्न जातियों के अधिकार सीमित थे।
  • दंडनीति और दायित्वों की संहिता स्थापित की गई।

मनुस्मृति बनाम आधुनिक संविधान:

  • मनुस्मृति वर्णाश्रम व्यवस्था और जाति-आधारित कानूनों पर केंद्रित थी, जबकि भारतीय संविधान समानता और धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है।
  • भारतीय संविधान में “सामाजिक न्याय” का सिद्धांत अपनाया गया, जिसने जातिगत भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया।

(iii) अन्य विधि ग्रंथ और शासन प्रणाली

  • याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, और पाराशर स्मृति भी न्याय और विधि व्यवस्था से संबंधित थीं।
  • मौर्य और गुप्त काल में न्यायिक प्रशासन अधिक संगठित हुआ।
  • चाणक्य के “अर्थशास्त्र” में दंड नीति और प्रशासन की विस्तृत जानकारी दी गई है।

    भाग 2: मध्यकालीन भारत की विधि प्रणाली

3. इस्लामी शासन और न्याय व्यवस्था

  • दिल्ली सल्तनत और मुगल शासनकाल में इस्लामी कानून (शरिया) का प्रभाव था।
  • मुगलों के समय “फतवा-ए-आलमगिरी” एक प्रमुख कानूनी संहिता बनी।
  • राजा के अधीन काजी न्याय देते थे, लेकिन हिंदुओं के लिए उनके परंपरागत कानून मान्य थे।

4. मराठा और सिख विधि प्रणाली

  • मराठों ने स्थानीय पंचायत व्यवस्था को महत्व दिया।
  • सिख शासनकाल में “गुरु ग्रंथ साहिब” को नैतिक और कानूनी आधार माना गया।

भाग 3: ब्रिटिश शासन और संवैधानिक विकास

5. ब्रिटिश शासन के दौरान संवैधानिक सुधार

ब्रिटिश शासन में भारतीय कानूनों को ब्रिटिश प्रणाली के अनुरूप बनाने की कोशिश की गई।

(i) 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट

  • भारत में ब्रिटिश शासन को कानूनी आधार प्रदान किया।
  • गवर्नर जनरल (वॉरेन हेस्टिंग्स) की नियुक्ति की गई।
  • सुप्रीम कोर्ट की स्थापना (कलकत्ता में)।

(ii) 1813, 1833 और 1853 के चार्टर एक्ट

  • भारतीय प्रशासन में सुधार लाने की प्रक्रिया शुरू हुई।
  • 1833 का एक्ट गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया का पद सृजित करता है।
  • 1853 का एक्ट पहली बार विधायी परिषद में भारतीयों को नामांकित करने की अनुमति देता है।

(iii) 1858 का भारत सरकार अधिनियम

  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हुआ।
  • भारत ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया।

(iv) 1861, 1892 और 1909 के अधिनियम

  • विधायी सुधारों की शुरुआत हुई।
  • 1909 का मिंटो-मॉर्ले सुधार मुस्लिमों को पृथक निर्वाचन प्रणाली प्रदान करता है।

(v) 1919 का भारत सरकार अधिनियम

  • द्वैध शासन प्रणाली लागू की गई।
  • प्रांतीय स्वायत्तता को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया।

(vi) 1935 का भारत सरकार अधिनियम

  • यह भारतीय संविधान के लिए नींव साबित हुआ।
  • प्रांतीय स्वायत्तता को बढ़ाया गया।
  • संघीय संरचना की परिकल्पना की गई।

भाग 4: भारतीय संविधान की निर्माण प्रक्रिया

6. संविधान सभा और उसका कार्य

  • संविधान सभा का गठन: 9 दिसंबर 1946
  • अध्यक्ष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
  • प्रारूप समिति के अध्यक्ष: डॉ. भीमराव अंबेडकर
  • संविधान निर्माण में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे।
  • 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।

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