Polity का सफर मानव सभ्यता के विकास के साथ शुरू हुआ, जो समाज में शासन की नींव रखने वाले शुरुआती संगठनों से लेकर आज के आधुनिक लोकतंत्र तक पहुंचा है। आइए इस यात्रा को विभिन्न युगों के संदर्भ में समझते हैं:
“Polity” शब्द का अर्थ किसी राज्य, समाज या संगठन की शासन व्यवस्था और उसकी संरचना से होता है। यह शब्द राजनीतिक विज्ञान में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है और इसमें किसी राज्य के राजनीतिक सिद्धांतों, नीतियों, संरचनाओं, और प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
भारत में “Polity” का अध्ययन संविधान, संघीय व्यवस्था, सरकार के विभिन्न अंग (जैसे विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका), राज्य और केंद्र के बीच संबंध, और नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों पर केंद्रित होता है।
संक्षेप में, Polity उस संपूर्ण ढांचे को संदर्भित करता है जिसके माध्यम से एक समाज या देश अपने शासन को संचालित करता है और नागरिकों के अधिकारों एवं कर्तव्यों को सुनिश्चित करता है।
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) का राजनीतिक विकास 7000 ईसा पूर्व से शुरू होकर लगभग 1300 ईसा पूर्व तक चला। इस सभ्यता का राजनैतिक ढांचा अन्य प्राचीन सभ्यताओं से काफी अलग था, क्योंकि सिंधु घाटी में राजाओं या साम्राज्यों के ठोस प्रमाण नहीं मिलते। इसके बावजूद, वहाँ एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक और सामाजिक ढांचा मौजूद था, जो इसे एक उन्नत और संगठित सभ्यता बनाता है। आइए इस सभ्यता के राजनीतिक सफर को समझते हैं:
1. प्रारंभिक चरण (Early Phase) – मेहरगढ़ काल (7000 ईसा पूर्व से 3300 ईसा पूर्व तक)
- राजनीतिक संरचना: प्रारंभिक बस्तियों में कोई संगठित राजनीतिक ढांचा नहीं था। लोग छोटे समूहों या कबीलाई ढांचे में रहते थे।
- प्रशासन और नेतृत्व: उस समय का नेतृत्व सामूहिक निर्णयों पर आधारित था, जहाँ संभवतः बुजुर्गों या जनजातीय मुखियाओं का प्रभुत्व था। यह एक सामुदायिक व्यवस्था थी, जिसमें सभी लोग कृषि और पशुपालन में संलग्न रहते थे।
- समाज का विकास: खेती और पशुपालन के विकास के साथ ही एक संगठित समाज की नींव पड़ी, लेकिन कोई औपचारिक शासन व्यवस्था स्थापित नहीं हुई थी।
2. पूर्व-हड़प्पा काल (Pre-Harappan Phase) – 3300 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व तक
- राजनीतिक संगठनों की शुरुआत: इस काल में स्थायी बस्तियों का विस्तार हुआ और प्रशासनिक व्यवस्था का आधार तैयार हुआ। गाँवों और कस्बों में नेतृत्व करने वाले व्यक्ति या समूह संभवतः उभरने लगे।
- शासन का स्वरूप: ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ निर्णय लेने की प्रक्रिया में सामूहिकता थी। अलग-अलग बस्तियों का आपसी संबंध तो था, पर हर बस्ती में एक स्थानीय प्रशासनिक ढांचा विकसित हो गया था।
- अर्थव्यवस्था का संगठन: इस काल में व्यापार और कृषि के विस्तार के कारण बस्तियों के बीच आपसी संबंध बढ़ने लगे, जिससे एक संगठित राजनीतिक ढाँचे की आवश्यकता महसूस हुई।
3. परिपक्व हड़प्पा काल (Mature Harappan Phase) – 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक
- संगठित प्रशासनिक ढांचा: यह सिंधु घाटी सभ्यता का चरम काल था। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धोलावीरा जैसे बड़े शहरों में सुव्यवस्थित प्रशासनिक प्रणाली का प्रमाण मिलता है।
- केन्द्रीयकृत नियंत्रण: शहरों की उन्नत योजना, जल निकासी व्यवस्था, और विशाल भवनों के निर्माण से लगता है कि कोई केंद्रीय प्रशासनिक ढांचा था। हालांकि, किसी राजा या सम्राट का स्पष्ट सबूत नहीं मिला है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ नगर प्रशासन का कोई ढांचा था जो इन कार्यों का संचालन करता था।
- प्रशासनिक भवन: शहरों में विशाल अन्नागार, सार्वजनिक स्नानागार, और सभा स्थलों का निर्माण हुआ, जो किसी प्रकार की सामूहिक प्रशासनिक गतिविधियों का संकेत देते हैं।
- लेखन और मुद्राएँ: सिंधु लिपि का उपयोग व्यापार, प्रशासन और संचार के लिए किया जाता था, जिससे पता चलता है कि लेखन का इस्तेमाल एक संगठित प्रशासनिक व्यवस्था के तहत किया जा रहा था।
- राजनीतिक संरचना: इस सभ्यता में राजाओं का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। यह एक अनोखी विशेषता थी कि शायद यहाँ का शासन नगर राज्य (City-State) की तरह चलता था, जहाँ बस्तियों का प्रबंधन स्थानीय अधिकारियों द्वारा किया जाता था।
- व्यापार और राजनीतिक संबंध: सिंधु घाटी सभ्यता का मेसोपोटामिया के साथ व्यापारिक संबंध था। इससे पता चलता है कि यह एक संगठनात्मक रूप से परिपक्व सभ्यता थी, जहाँ विदेश व्यापार और आर्थिक गतिविधियों का नियमन था।
4. उत्तर-हड़प्पा काल (Late Harappan Phase) – 1900 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक
- राजनीतिक विघटन: इस काल में सिंधु घाटी सभ्यता के शहर धीरे-धीरे वीरान होने लगे। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन, बाढ़, अकाल, और शायद आंतरिक संघर्ष जैसे कई कारण माने जाते हैं।
- विकेंद्रीकरण: जैसे-जैसे सभ्यता का पतन हुआ, केंद्रीय प्रशासनिक ढांचा कमजोर होता गया। लोग छोटे गाँवों में बसने लगे और समाज में विकेंद्रीकरण बढ़ गया।
- नए राजनीतिक ढांचे का उदय: सभ्यता के अंत के बाद स्थानीय स्तर पर छोटे-छोटे समूह या कबीलाई ढांचे फिर से स्थापित होने लगे। इस काल में राजनीतिक संगठन की स्पष्टता कम हो गई थी, और सभ्यता का एकीकृत स्वरूप धीरे-धीरे टूट गया।
सभ्यता का पतन और राजनीतिक विरासत
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन लगभग 1300 ईसा पूर्व तक हो गया था। इसके बाद का काल वैदिक सभ्यता के आरंभ का माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता का राजनीतिक ढांचा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ एक संगठित नगर व्यवस्था, प्रशासनिक संरचना और समाज का ऐसा प्रबंधन देखने को मिलता है जिसमें केंद्रीय शासक का अभाव है।
इसका राजनीतिक सफर हमें बताता है कि कैसे बिना किसी राजा या सम्राट के, यह सभ्यता संगठित और सुव्यवस्थित बनी रही।
प्राचीन कृषि क्रांति को इतिहास में पहली कृषि क्रांति या निओलिथिक क्रांति (Neolithic Revolution) के नाम से भी जाना जाता है। यह महत्वपूर्ण क्रांति लगभग 10,000 से 12,000 वर्ष पूर्व हुई थी, और यह मानव इतिहास में सबसे बड़े बदलावों में से एक मानी जाती है। इस क्रांति ने मनुष्य के जीवन और समाज में अनेक बदलाव लाए, क्योंकि इसी के साथ मनुष्य ने शिकार और संग्रहण जीवन से कृषि और स्थाई बस्तियों में जीवन जीने की शुरुआत की। राजनीति, समाज के प्रबंधन और शक्ति के संतुलन को समझने का विज्ञान है। इसका उद्देश्य नियम, नीतियों और निर्णयों के माध्यम से समाज में व्यवस्था बनाए रखना है। प्राचीन समय से ही राजनीति का अस्तित्व रहा है, जहाँ आदिम समाजों में जनजातीय नेताओं द्वारा फैसले किए जाते थे। सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न प्रकार की शासन प्रणालियों का उदय हुआ, जैसे कि राजतंत्र, लोकतंत्र, साम्यवाद, और समाजवाद।