
बौद्ध धर्म, जो छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत की भूमि पर जन्मा, एक समय देश ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया में फैला हुआ था। Why Did Buddhism Decline in India? सिद्धार्थ गौतम, जिन्हें हम भगवान बुद्ध के नाम से जानते हैं, ने इस धर्म की स्थापना की। यह धर्म करुणा, अहिंसा और आत्मज्ञान पर आधारित था और विशेष रूप से आम जनता को अत्यंत प्रिय लगा।
लेकिन यह कितना आश्चर्यजनक है कि जिस भूमि पर यह धर्म जन्मा और फला-फूला, वही भूमि बाद में बौद्ध धर्म के लिए लगभग वीरान बन गई। आखिर ऐसा क्यों हुआ? चलिए जानते हैं विस्तार से, भारत में बौद्ध धर्म के उदय से लेकर उसके पतन तक की पूरी ऐतिहासिक कहानी।
1. बौद्ध धर्म का उदय और प्रसार
बौद्ध धर्म का जन्म एक ऐसे समय में हुआ जब समाज में ब्राह्मणवाद और कठोर जाति व्यवस्था से असंतोष फैल चुका था। बुद्ध ने जब चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया तो यह लोगों के मन को छू गया।
प्रसार के कारण:
- राजकीय संरक्षण: सम्राट अशोक जैसे महान शासकों ने बौद्ध धर्म को अपनाया और उसके प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई। अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद हिंसा छोड़कर बौद्ध धर्म को अपनाया और उसे श्रीलंका, मध्य एशिया, और दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैलाया।
- महाविहार और विश्वविद्यालय: नालंदा, विक्रमशिला जैसे बौद्ध शिक्षा केंद्रों ने वैश्विक विद्वानों को आकर्षित किया।
- जनसामान्य की भाषा में उपदेश: बौद्ध धर्म की शिक्षाएं पालि और प्राकृत जैसी सरल भाषाओं में थीं।
- साधारण जीवनशैली: बुद्ध की शिक्षाएं आडंबर से मुक्त थीं, जो आम आदमी के लिए आकर्षक थीं।
2. भारत में बौद्ध धर्म के पतन के आंतरिक कारण
(क) संप्रदायों में विभाजन और जटिलता
समय के साथ बौद्ध धर्म कई शाखाओं में विभाजित हो गया—थेरवाद, महायान, और वज्रयान। इससे धर्म की एकता कमजोर हुई।
महायान में बुद्ध को ईश्वर जैसा स्थान मिला और मूर्ति पूजा शुरू हो गई।
वज्रयान में तांत्रिक रीति-रिवाज और रहस्यमय अनुष्ठानों ने बौद्ध धर्म को जटिल बना दिया।
यह विभाजन साधारण लोगों को भ्रमित करने लगा और उन्होंने बौद्ध धर्म से दूरी बनानी शुरू कर दी।
(ख) भिक्षु संघ में अनुशासनहीनता
- बौद्ध विहारों में दान और संपत्ति की अधिकता के चलते कई भिक्षु विलासी जीवन जीने लगे।
- ध्यान और साधना का स्थान वैभव और कर्मकांड ने ले लिया।
- भिक्षुओं का आम जन से संपर्क टूट गया और वे आत्म-केन्द्रित हो गए।
(ग) लोक-समर्थन की कमी
बौद्ध धर्म ने संन्यास को महत्व दिया और गृहस्थ जीवन को द्वितीय श्रेणी में रखा। इससे सामान्य लोग उससे जुड़ नहीं पाए। वहीं हिंदू धर्म ने भक्ति आंदोलन के ज़रिए लोगों से भावनात्मक संबंध बना लिया।
3. बाहरी कारणों से पतन
(क) हिंदू धर्म का पुनरुद्धार
- बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत जैसे अहिंसा, करुणा और ध्यान को हिंदू धर्म ने आत्मसात कर लिया।
- आदि शंकराचार्य जैसे विद्वानों ने वेदांत का प्रचार किया और बौद्ध तर्कशास्त्र को पराजित किया।
- भक्ति आंदोलन ने भगवान को हर व्यक्ति के दिल से जोड़ दिया—इसमें न जात-पात थी, न ही जटिल कर्मकांड।
(ख) सम्राट अशोक के बाद राजनीतिक संरक्षण की कमी
- अशोक के बाद अधिकांश भारतीय राजवंशों ने बौद्ध धर्म को संरक्षण नहीं दिया।
- गुप्त वंश, जो हिंदू धर्म का समर्थक था, ने बौद्ध धर्म को बढ़ावा नहीं दिया।
- बौद्ध विहार जो राजाओं की दान पर आधारित थे, धीरे-धीरे आर्थिक संकट में चले गए।
(ग) मुस्लिम आक्रमण और शिक्षा केंद्रों का विनाश
11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच मुस्लिम आक्रमणों ने बौद्ध धर्म पर निर्णायक प्रहार किया।
- 1193 ईस्वी में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। हजारों पांडुलिपियाँ जला दी गईं और भिक्षुओं की हत्या कर दी गई।
- विक्रमशिला, ओदंतपुरी, सांची, जैसे अन्य विश्वविद्यालयों को भी तहस-नहस कर दिया गया।
- इस विनाश ने:
- बौद्ध शिक्षा की रीढ़ तोड़ दी।
- बचे हुए भिक्षु तिब्बत, नेपाल, और दक्षिण भारत की ओर चले गए।
- आम जनता के बीच धर्म का संपर्क टूट गया।
4. सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन
(क) जातिवादी हिंदू व्यवस्था की पुनर्स्थापना
- बौद्ध धर्म की मूल भावना जाति-निरपेक्ष थी, लेकिन समय के साथ:
- हिंदू धर्म ने फिर से जातियों को संगठित किया और बौद्धों को निचली जातियों में समाहित कर लिया।
- बौद्ध समाज की अलग पहचान धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
(ख) भाषा का संकट
- प्रारंभ में बौद्ध धर्म की शिक्षाएं जनभाषा में थीं (पालि, प्राकृत)।
- बाद में महायान ने संस्कृत का उपयोग करना शुरू किया, जो आम लोगों के लिए कठिन थी।
- दूसरी ओर, हिंदू धार्मिक ग्रंथों को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित कर आम लोगों तक पहुँचाया गया।
(ग) सामान्य लोगों की अरुचि
- बौद्ध धर्म के संस्थान लोगों के दुख-दर्द से कटने लगे।
- हिंदू मंदिरों और त्योहारों ने लोगों की दिनचर्या में विशेष स्थान बना लिया।
5. भारत से बाहर बौद्ध धर्म का फैलाव
भारत में पतन के बावजूद बौद्ध धर्म( Why Did Buddhism Decline in India?) ने विदेशों में अपनी जड़ें और भी मजबूत कीं:
- श्रीलंका, थाईलैंड, बर्मा (म्यांमार) में थेरवाद बौद्ध धर्म पनपा।
- चीन, जापान, कोरिया में महायान ने विशेष रूप लिया।
- तिब्बत में वज्रयान बौद्ध धर्म ने धार्मिक और राजनीतिक शक्ति का केंद्र बनाया।
भारत में यह केवल सीमावर्ती क्षेत्रों तक सीमित रह गया, जैसे:
- लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल, सिक्किम।
- महाराष्ट्र में डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रयासों से दलित समाज में नवयान बौद्ध धर्म का उदय हुआ।
6. अंतिम झटका: 10वीं से 13वीं शताब्दी
शिक्षा केंद्रों का नाश
भिक्षुओं का संहार या निर्वासन
जन समर्थन की पूर्ण समाप्ति
इन सबका परिणाम यह हुआ कि भारत में बौद्ध धर्म लगभग लुप्तप्राय हो गया।
7. आधुनिक पुनर्जागरण और जागरूकता

20वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म का एक नया अध्याय शुरू हुआ:
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1956 में लाखों दलितों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया।
- बोधगया, सांची, सारनाथ जैसे स्थलों का जीर्णोद्धार हुआ।
- अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन और बुद्धिस्ट सम्मेलनों ने नई पीढ़ी को जोड़ा।
निष्कर्ष:
भारत में बौद्ध धर्म के पतन के पीछे कई कारक थे: Why Did Buddhism Decline in India?
आंतरिक विभाजन और अनुशासनहीनता
राजकीय संरक्षण की समाप्ति
हिंदू धर्म का पुनरुद्धार
मुस्लिम आक्रमण और संस्थानों का नाश
सामाजिक-सांस्कृतिक कटाव
फिर भी, बौद्ध धर्म की शिक्षाएं आज भी जीवित हैं—दुनिया के कई हिस्सों में और भारत के दिल में भी।
यह कहानी न सिर्फ एक धर्म के उत्थान और पतन की है, बल्कि यह भी सिखाती है कि अगर कोई विचारधारा जनता से जुड़ी न रहे, समय के साथ उसे नये सांचे में न ढाला जाए, तो वह धीरे-धीरे खत्म हो सकती है।