पेरियार ई.वी. रामासामी (1879–1973), जिन्हें “द्रविड़ आंदोलन के जनक” के रूप में जाना जाता है, तमिलनाडु के एक प्रमुख समाज सुधारक, राजनेता और विचारक थे। उन्होंने अपना जीवन जाति भेदभाव के खिलाफ लड़ने, महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने और तर्कवाद के समर्थन में समर्पित कर दिया।
प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 17 सितंबर 1879, इरोड, तमिलनाडु।
- परिवार: वह एक समृद्ध बलिजा नायडू व्यापारी परिवार में पैदा हुए।
- शिक्षा: पेरियार ने स्कूल में पढ़ाई की लेकिन जल्दी ही पढ़ाई छोड़ दी, क्योंकि उन्हें पारंपरिक शिक्षा में रुचि नहीं थी।
- प्रारंभिक अनुभव: बचपन से ही उन्होंने समाज में जाति-आधारित भेदभाव और अन्याय देखा, जिसने उनके भीतर न्याय की गहरी भावना विकसित की।
जीवन यात्रा और वैचारिक विकास
1. समाज सेवा और राजनीति में प्रवेश:
- परिवार के व्यापार में काम करने के बाद, उन्होंने समाज सेवा और राजनीति में रुचि ली।
- काशी की यात्रा ने उन्हें हिंदू रूढ़िवादिता और शोषण की सच्चाई से अवगत कराया।
2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होना:
- 1919 में पेरियार ने जातीय भेदभाव को खत्म करने के उद्देश्य से कांग्रेस पार्टी जॉइन की।
- लेकिन कांग्रेस द्वारा जाति व्यवस्था के उन्मूलन पर गंभीरता न दिखाने से वे निराश हुए और 1925 में पार्टी छोड़ दी।
3. आत्मसम्मान आंदोलन (1925):
- पेरियार ने आत्मसम्मान आंदोलन शुरू किया, जिसका उद्देश्य द्रविड़ लोगों में गर्व जगाना और जाति भेदभाव को समाप्त करना था।
- इस आंदोलन ने तर्कवाद, लैंगिक समानता और अंधविश्वासों को खत्म करने पर जोर दिया।
4. द्रविड़ पहचान के लिए संघर्ष:
- उन्होंने यह तर्क दिया कि दक्षिण भारतीय (द्रविड़) उत्तर भारतीयों (आर्यों) से सांस्कृतिक और नस्लीय रूप से अलग हैं।
- हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में थोपे जाने का उन्होंने कड़ा विरोध किया।
5. जस्टिस पार्टी और द्रविड़ कड़गम:
- 1939 में पेरियार जस्टिस पार्टी के नेता बने, जिसने उनके विचारों को समर्थन दिया।
- 1944 में उन्होंने इसे द्रविड़ कड़गम में बदल दिया, जो तमिल पहचान और सामाजिक समानता का प्रचार करने वाला गैर-राजनीतिक संगठन था।
6. महिला अधिकारों के लिए समर्थन:
- पेरियार ने बाल विवाह, दहेज प्रथा और पितृसत्ता का विरोध किया।
- महिलाओं की शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह के समर्थक रहे।
दर्शन और विचारधारा
- तर्कवाद: उन्होंने अंधविश्वास और पारंपरिक मान्यताओं पर सवाल उठाने की वकालत की।
- जाति-विरोध: जाति प्रथा, विशेष रूप से ब्राह्मणवादी वर्चस्व को समाप्त करने की वकालत की।
- नास्तिकता: धर्म और भगवान की अवधारणा को खारिज कर दिया।
- सामाजिक न्याय: दलितों और महिलाओं के समान अधिकारों का समर्थन किया।
- भाषा और संस्कृति: तमिल गौरव और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए लड़ाई लड़ी।
मुख्य योगदान
आत्मसम्मान विवाह:
- ऐसे विवाह शुरू किए जो धार्मिक अनुष्ठानों और जातिगत बाधाओं से मुक्त थे।
हिंदी विरोधी आंदोलन:
- 1930 और 1960 के दशक में तमिलनाडु में हिंदी थोपने का विरोध किया।
धर्मनिरपेक्षता का प्रचार:
- राजनीति और व्यक्तिगत जीवन में धर्म को अलग करने की सलाह दी।
साहित्यिक कार्य:
- उन्होंने धार्मिक रूढ़िवाद और जातिवाद की आलोचना करते हुए अनेक लेख, भाषण और किताबें लिखीं।
शिक्षा और संस्थान निर्माण:
- वंचित समुदायों को सशक्त बनाने के लिए शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की।
आलोचना और विवाद
- उनकी स्पष्ट नास्तिकता और हिंदू धर्मग्रंथों की आलोचना ने कई धार्मिक और रूढ़िवादी समूहों को नाराज किया।
- द्रविड़ राज्यों के लिए अलगाव की उनकी मांग विवादास्पद रही।
- फिर भी उनके अनुयायियों ने उनकी साहसिकता और न्याय के प्रति समर्पण को सराहा।
अंतिम दिन और विरासत
- मृत्यु: पेरियार का निधन 24 दिसंबर 1973 को वेल्लोर, तमिलनाडु में हुआ।
- विरासत:
- द्रविड़ आंदोलन: DMK और AIADMK जैसी पार्टियों ने उनके विचारों को आगे बढ़ाया।
- सामाजिक सुधार: तमिलनाडु में जातीय भेदभाव को कम करने और वंचित समुदायों के उत्थान में योगदान।
- सांस्कृतिक जागरूकता: तमिल भाषा और संस्कृति को संरक्षित और प्रचारित किया।
निष्कर्ष
पेरियार ई.वी. रामासामी भारतीय इतिहास के एक महान व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और समानता और तर्कवाद के लिए प्रेरणा दी। उनकी विरासत आज भी लाखों लोगों को सामाजिक न्याय और समानता के लिए प्रेरित करती है।